Thursday, 7 April 2011

क्या आप को मालूम है : पचास किलो चांदी खा जाते हैं रोज

खाने-पीने के शौकीन शहर बनारस में लोग प्रतिदिन लगभग पचास किलो चांदी चट कर जाते हैं। जरिए अलग-अलग हैं। मसलन चांदी से ही तैयार किया जाने वाला तबक (वर्क) जहां मिठाई को आकर्षक बना रहा है वहीं जर्दा-जाफरानी में भी इसका प्रयोग होता है। अलावा इसके आयुर्वेद दवाओं में भी चांदी मिक्स की जाती है। सिर्फ बनारस में लगभग 50 किलो चांदी रोज खप जाती है।
जानकार बताते हैं कि तबक अर्थात चांदी के वर्क का चलन यूनान से भारत आया। सबसे पहले यह शौक सूरत और उसके बाद काशी पहुंचा। इसे हकीम लुकमान की ईजाद माना जाता है। इसको खाने से ऑखों की रोशनी व स्मरण शक्ति बढ़ती है। हृदय के लिए भी यह काफी फायदेमंद है। शरीर में ताजगी व स्फूर्ति पैदा करता है। मिठाई में तबक सिर्फ आकर्षण के लिए ही नहीं लगाया जाता, यह स्वास्थ्य की दृष्टि से रामबाण है। जर्दा कारोबारी भी इसका खूब प्रयोग करते हैं। जर्दा व मीठी सुपाड़ी में इसके इस्तेमाल से जर्दा के हानिकारक तत्वों में कमी आ जाती है, देखने में भी यह आकर्षक लगने लगता है।
बताते हैं कि पांच ग्राम चांदी को पीटकर 150 से 160 पीस चांदी का वर्क यानी तबक तैयार होता है। पांच ग्राम चांदी को विशेष प्रकार से बनी थैली में रखकर करीब तीन घंटे लगातार पीटा जाता है। एक कारीगर दिन में तीन गड्डी से ज्यादा तबक तैयार नहीं कर पाता। इसे पीटने में काफी मेहनत लगती है। वर्क को जिस पत्थर पर पीटकर तैयार किया जाता है वह खास प्रकार का होता है जो सिर्फ गया बिहार में ही मिलता है। बनारस में यह कारोबार छत्तातले, कोयला बाजार व लल्लापुरा में होता है।
हालांकि अब चांदी के बेहद महंगी होने से इसका असर धंधे पर पड़ने लगा है। व्यवसाय में लगभग पचास फीसदी कमी आई है। अल्युमीनियम मिक्स चांदी के वर्क का खतरा गहरा गया है। दस साल पहले तक इस धंधे में लगभग 10 हजार कारीगर थे लेकिन अब मुश्किल से दो हजार बचे हैं।
तबक को चांदी की बुंदिया से तैयार किया जाता है। यह नेपाल से आती है। चांदी की बुंदिया को मशीन से दबाकर पत्तर बनाया जाता है फिर तबक बनाने में प्रयोग करते हैं। बनारस का तबक अन्य स्थानों से काफी अच्छा होता है। यही वजह है की यहां का तबक भारत के अन्य प्रदेशों में जाता है। प्रतिदिन लगभग पचास से साठ किलो की खपत है।

No comments:

Post a Comment