सौर उर्जा के विषय में कुछ जानकारी लिखने का प्रयास कर रहा हूँ , बहुत कुछ त्रुटियाँ भी होंगी लेकिन विद्वानों की सलाह पर सुधार की कोशिश करूंगा , निम्न लिखित जानकारियां विभिन्न स्र्तों से ली गयी है , मैंने केवल संकलन का एक सार्थक प्रयास किया है .
परंपरागत ऊर्जा के श्रोतों में आने वाली कमी के मद्देनज़र और भारत में बिजली की भारी बरबादी और उसके फलस्वरूप पैदा होने वाली किल्लत के चलते, भारत सौर ऊर्जा का जितना दोहन करे उतना अच्छा रहेगा और इससे परंपरागत श्रोतों पर निर्भरता भी कम हो जायेगी। और वैसे भी राज्य विद्युत बोर्डों द्वारा दी जा रही बिजली का कोई भरोसा नहीं है, बिजली घरों की खस्ता हालत है और कई संयत्र इतने पुराने या बगैर रखरखाव के इतने खराब हो चुके हैं कि उत्पादन क्षमता का २०-३० प्रतिशत ही हो पता है। साथ में बिजली की चोरी का तो कोई ठिकाना ही नहीं है। साथ साथ परंपरागत श्रोतों (कोयला, गैस या पानी) से ऊर्जा के उत्पादन की वजह से पर्यावरण पर घातक प्रभाव पड़ रहा है और कार्बन डाइअ ऑक्साइड जैसी गैसों की वजह से पिछले कुछ दशकों में वैश्विक तापमान में काफ़ी वृद्धि हुई है जिससे कि मानवजाति, जीव जन्तु और कई वनस्पतियों के अस्तित्व को खतरा हो सकता है। इन सब कारणों के चलते सौर ऊर्जा की प्रासंगिकता और ज़्यादा बढ़ जाती है। इसीलिये इस लेख में सौर बैटरी की कार्यप्रणाली का वर्णन किया जा रहा है।
सौर बैटरी कई छोटी चीज़ों में देखी जा सकती है मसलन कैल्कुलेटर और बड़ी जगहों पर भी जैसे कि मकानों या भवनों की छतों पर लगे हुये विशाल सौर पैनल या फिर उपग्रहों में प्रयुक्त सौर पैनल। सौर बैटरी छोटे प्रयोगों में ज़्यादा काम में आती है जैसे कि आजकल लगभग हर कैल्कुलेटर सौर बैटरी युक्त होता है। बड़े पैनल कम प्रयोग में आते हैं लेकिन फिर भी कई जगहों पर देखे जा सकते हैं। और ये बैटरियां काम करती रहती हैं जब तक कि सौर ऊर्जा उपयुक्त मात्रा में उपलब्ध रहती है। कैल्कुलेटर की बैटरी तो कमरे में भी काम करती है जहां प्रकाश बाहर के मुकाबले कम रहता है।
लगभग पूरी दुनिया में सौर ऊर्जा की बहुतायत को देखते हुये पिछले २०-२५ सालों में सौर ऊर्जा को मुख्य ऊर्जा का श्रोत बनाने के कई उपाय हुये हैं। इस काम में आशातीत सफलता तो नहीं मिली है लेकिन कुछ सफलता ज़रूर मिली है, मसलन जर्मनी सौर ऊर्जा का काफ़ी इस्तेमाल करता है। लेकिन भारत जैसे सौर ऊर्जा सम्पन्न देश में इसकी सफलता काफ़ी महत्वपूर्ण है। इस सब बातों को देखते हुये शोध अभी भी ज़ारी है। मुख्य समस्या है सौर पैनलों की कम ऊर्जा परिवर्तन क्षमता (सौर ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा में) और उनकी भारी कीमत। लेकिन उम्मीद है आने वाले समय में नये व बेहतर पदार्थों की खोज होने से कीमतें गिरेंगीं और परिवर्तन क्षमता भी सुधरेगी। तो नीचे देखते हैं कि ये बैटरी आखिर काम कैसे करती है।
फोटोवोल्टॉइक शब्द का यदि सन्धिविच्छेद किया जाये तो हम देखते हैं कि फोटो का मतलब प्रकाश से और वोल्टेज का सम्बन्ध विद्युत से है। कुल मिलाकर ये बैटरी प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलती है और तकनीकी स्तर पर सौर किरणों से आने वाले फोटॉनों (फोटॉन यानी प्रकाशकण) को विद्युत प्रवाह करने वाले कणों इलेक्ट्रान और होल में परिवर्तित किया जाता है जिनका प्रवाह वोल्टेज यानी विभव को जन्म देता है। मौलिक स्तर पर जितनी ज़्यादा और ऊर्जा हो उतना ज़्यादा विभव और उतनी ही ज़्यादा ऊर्जा यहां तक कि पूरे घर की बिजली सौर ऊर्जा से प्राप्त की जा सकती है। अब देखते हैं कि ये सेल काम कैसे करते हैं ।
फोटोवोल्टॉइक सेल विशेष पदार्थों के बने होते हैं जिनको कि अर्धचालक या सेमीकण्डक्टर कहा जाता है। इसमें सिलिकॉन (Si) मुख्यतः प्रयोग में लाया जाता है क्योंकि ये बहुतायत में उपलब्ध है, औद्योगिक कम्पनियां इसको ही प्रयोग करती हैं और अन्य सेमीकण्डक्टर पदार्थों के मुकाबले ये काफ़ी सस्ता है। जब सौर ऊर्जा उन पदार्थों के ऊपर पड़ती है तो ये पदार्थ उस ऊर्जा का कुछ भाग सोख लेते हैं और उस अवशोषित ऊर्जा से इलेक्ट्रान पैदा होते हैं। इन इलेक्ट्रानों को सेमीकण्डक्टर में विद्युत क्षेत्र लगाकर एक दिशा में बहाया जाता है (विद्युत धारा उल्टी दिशा में प्रवाहित होती है)। सेमीकण्डक्टर पदार्थ के उपर और नीचे वाले दो सिरों पर किसी चालक धातु की पतली परतें चिपकाकर तारों से चक्र या परिपथ पूरा करके विद्युत धारा को प्रवाहित किया जाता है। इस विद्युतधारा को यदि सेल से पैदा हुये वोल्टेज या विभव से गुणा कर दिया जाये तो सेल की शक्ति या पॉवर (वॉट में) पता चल जाती है।
ये वर्णन काफ़ी सरल है और किसी आम व्यक्ति को ये बताता है कि सौर बैटरी कैसे और क्या करती है। इसकी कार्यप्रणाली को और गहराई में जानने के लिये आगे बढ़ते हैं और इसके लिये हम Single Crystal सिलिकॉन से बने सेल का उदाहरण लेंगे।
सिलिकॉन:
सिलिकॉन एक विशेष पदार्थ जिसकी कुछ खासियतें एसको बहुत उपयोगी पदार्थ बना देती हैं, खासतौर से जब ये single crystal अवस्था में होता है। सिलिकॉन के एक परमाणु में १४ इलेक्ट्रान होते हैं, पहले दो शेल या चक्र पूरे भरे होते हैं (पहले में २ और दूसरे में आठ इलेक्ट्रान), पर तीसरा चक्र, जिसकी क्षमता होती है चाहिये होते हैं आठ इलेक्ट्रान पर बचते हैं केवल ४ इलेक्ट्रान, इसलिये ये चक्र खाली रहता है और बाकी के चार इलेक्ट्रान ये पड़ोसी सिलिकॉन परमाणुओं से बांटकर लेता है, इस प्रकार के जुड़ाव या बद्धता को कहते हैं Covalent Bonding अर्थात सहआवेशित बन्ध। इन्हीं बन्धों के निर्वात में दोहराये जाने पर बनता है सिलिकॉन का स्फटिक या सिंगल क्रिस्टल और सिलिकॉन का फोटोवोल्टॉइक सेलों में काफ़ी फ़ायदा है। लेकिन १००% शुद्ध सिलिकॉन बहुत उपयोगी नहीं है क्योंकि सहआवेशित बन्ध के कारण इलेक्ट्रान अपनी जगह से हिल नहीं सकते हैं जिससे कि विद्युत धारा ही पैदा नहीं होगी। इसलिये काम में आने के लिये थोड़ा अशुद्ध सिलिकॉन ज़्यादा उपयोगी है जिसमें कि अलग से इलेक्ट्रान पैदा किये जा सकें जो कि चल फिर सकें।
परंपरागत ऊर्जा के श्रोतों में आने वाली कमी के मद्देनज़र और भारत में बिजली की भारी बरबादी और उसके फलस्वरूप पैदा होने वाली किल्लत के चलते, भारत सौर ऊर्जा का जितना दोहन करे उतना अच्छा रहेगा और इससे परंपरागत श्रोतों पर निर्भरता भी कम हो जायेगी। और वैसे भी राज्य विद्युत बोर्डों द्वारा दी जा रही बिजली का कोई भरोसा नहीं है, बिजली घरों की खस्ता हालत है और कई संयत्र इतने पुराने या बगैर रखरखाव के इतने खराब हो चुके हैं कि उत्पादन क्षमता का २०-३० प्रतिशत ही हो पता है। साथ में बिजली की चोरी का तो कोई ठिकाना ही नहीं है। साथ साथ परंपरागत श्रोतों (कोयला, गैस या पानी) से ऊर्जा के उत्पादन की वजह से पर्यावरण पर घातक प्रभाव पड़ रहा है और कार्बन डाइअ ऑक्साइड जैसी गैसों की वजह से पिछले कुछ दशकों में वैश्विक तापमान में काफ़ी वृद्धि हुई है जिससे कि मानवजाति, जीव जन्तु और कई वनस्पतियों के अस्तित्व को खतरा हो सकता है। इन सब कारणों के चलते सौर ऊर्जा की प्रासंगिकता और ज़्यादा बढ़ जाती है। इसीलिये इस लेख में सौर बैटरी की कार्यप्रणाली का वर्णन किया जा रहा है।
सौर बैटरी कई छोटी चीज़ों में देखी जा सकती है मसलन कैल्कुलेटर और बड़ी जगहों पर भी जैसे कि मकानों या भवनों की छतों पर लगे हुये विशाल सौर पैनल या फिर उपग्रहों में प्रयुक्त सौर पैनल। सौर बैटरी छोटे प्रयोगों में ज़्यादा काम में आती है जैसे कि आजकल लगभग हर कैल्कुलेटर सौर बैटरी युक्त होता है। बड़े पैनल कम प्रयोग में आते हैं लेकिन फिर भी कई जगहों पर देखे जा सकते हैं। और ये बैटरियां काम करती रहती हैं जब तक कि सौर ऊर्जा उपयुक्त मात्रा में उपलब्ध रहती है। कैल्कुलेटर की बैटरी तो कमरे में भी काम करती है जहां प्रकाश बाहर के मुकाबले कम रहता है।
लगभग पूरी दुनिया में सौर ऊर्जा की बहुतायत को देखते हुये पिछले २०-२५ सालों में सौर ऊर्जा को मुख्य ऊर्जा का श्रोत बनाने के कई उपाय हुये हैं। इस काम में आशातीत सफलता तो नहीं मिली है लेकिन कुछ सफलता ज़रूर मिली है, मसलन जर्मनी सौर ऊर्जा का काफ़ी इस्तेमाल करता है। लेकिन भारत जैसे सौर ऊर्जा सम्पन्न देश में इसकी सफलता काफ़ी महत्वपूर्ण है। इस सब बातों को देखते हुये शोध अभी भी ज़ारी है। मुख्य समस्या है सौर पैनलों की कम ऊर्जा परिवर्तन क्षमता (सौर ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा में) और उनकी भारी कीमत। लेकिन उम्मीद है आने वाले समय में नये व बेहतर पदार्थों की खोज होने से कीमतें गिरेंगीं और परिवर्तन क्षमता भी सुधरेगी। तो नीचे देखते हैं कि ये बैटरी आखिर काम कैसे करती है।
फोटोवोल्टॉइक शब्द का यदि सन्धिविच्छेद किया जाये तो हम देखते हैं कि फोटो का मतलब प्रकाश से और वोल्टेज का सम्बन्ध विद्युत से है। कुल मिलाकर ये बैटरी प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलती है और तकनीकी स्तर पर सौर किरणों से आने वाले फोटॉनों (फोटॉन यानी प्रकाशकण) को विद्युत प्रवाह करने वाले कणों इलेक्ट्रान और होल में परिवर्तित किया जाता है जिनका प्रवाह वोल्टेज यानी विभव को जन्म देता है। मौलिक स्तर पर जितनी ज़्यादा और ऊर्जा हो उतना ज़्यादा विभव और उतनी ही ज़्यादा ऊर्जा यहां तक कि पूरे घर की बिजली सौर ऊर्जा से प्राप्त की जा सकती है। अब देखते हैं कि ये सेल काम कैसे करते हैं ।
फोटोवोल्टॉइक सेल विशेष पदार्थों के बने होते हैं जिनको कि अर्धचालक या सेमीकण्डक्टर कहा जाता है। इसमें सिलिकॉन (Si) मुख्यतः प्रयोग में लाया जाता है क्योंकि ये बहुतायत में उपलब्ध है, औद्योगिक कम्पनियां इसको ही प्रयोग करती हैं और अन्य सेमीकण्डक्टर पदार्थों के मुकाबले ये काफ़ी सस्ता है। जब सौर ऊर्जा उन पदार्थों के ऊपर पड़ती है तो ये पदार्थ उस ऊर्जा का कुछ भाग सोख लेते हैं और उस अवशोषित ऊर्जा से इलेक्ट्रान पैदा होते हैं। इन इलेक्ट्रानों को सेमीकण्डक्टर में विद्युत क्षेत्र लगाकर एक दिशा में बहाया जाता है (विद्युत धारा उल्टी दिशा में प्रवाहित होती है)। सेमीकण्डक्टर पदार्थ के उपर और नीचे वाले दो सिरों पर किसी चालक धातु की पतली परतें चिपकाकर तारों से चक्र या परिपथ पूरा करके विद्युत धारा को प्रवाहित किया जाता है। इस विद्युतधारा को यदि सेल से पैदा हुये वोल्टेज या विभव से गुणा कर दिया जाये तो सेल की शक्ति या पॉवर (वॉट में) पता चल जाती है।
ये वर्णन काफ़ी सरल है और किसी आम व्यक्ति को ये बताता है कि सौर बैटरी कैसे और क्या करती है। इसकी कार्यप्रणाली को और गहराई में जानने के लिये आगे बढ़ते हैं और इसके लिये हम Single Crystal सिलिकॉन से बने सेल का उदाहरण लेंगे।
सिलिकॉन:
सिलिकॉन एक विशेष पदार्थ जिसकी कुछ खासियतें एसको बहुत उपयोगी पदार्थ बना देती हैं, खासतौर से जब ये single crystal अवस्था में होता है। सिलिकॉन के एक परमाणु में १४ इलेक्ट्रान होते हैं, पहले दो शेल या चक्र पूरे भरे होते हैं (पहले में २ और दूसरे में आठ इलेक्ट्रान), पर तीसरा चक्र, जिसकी क्षमता होती है चाहिये होते हैं आठ इलेक्ट्रान पर बचते हैं केवल ४ इलेक्ट्रान, इसलिये ये चक्र खाली रहता है और बाकी के चार इलेक्ट्रान ये पड़ोसी सिलिकॉन परमाणुओं से बांटकर लेता है, इस प्रकार के जुड़ाव या बद्धता को कहते हैं Covalent Bonding अर्थात सहआवेशित बन्ध। इन्हीं बन्धों के निर्वात में दोहराये जाने पर बनता है सिलिकॉन का स्फटिक या सिंगल क्रिस्टल और सिलिकॉन का फोटोवोल्टॉइक सेलों में काफ़ी फ़ायदा है। लेकिन १००% शुद्ध सिलिकॉन बहुत उपयोगी नहीं है क्योंकि सहआवेशित बन्ध के कारण इलेक्ट्रान अपनी जगह से हिल नहीं सकते हैं जिससे कि विद्युत धारा ही पैदा नहीं होगी। इसलिये काम में आने के लिये थोड़ा अशुद्ध सिलिकॉन ज़्यादा उपयोगी है जिसमें कि अलग से इलेक्ट्रान पैदा किये जा सकें जो कि चल फिर सकें।
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